व्यक्ति एवं इच्छाएँ
व्यक्ति जीवन जीता चला जाता है बिना कुछ सोचे समझे समाज के रीति रिवाजों को अंतिम सत्य मानते हुए बिना ये विचार किए कि किसी का सत्य किसी के लिए मिथ्या है।
प्रसिद्ध मनोविज्ञानी अब्राहम मॉसलो तीन चीजों के बारे में बताते है : Need-->Drive-->Incentive।
व्यक्ति इन्ही तीनो के इर्दगिर्द चक्कर लगाते हुए जीवन व्यतीत करता है। पहले उसे किसी चीज की जरूरत होती है(Need), फिर उसमे उसे पाने के लिए एक इच्छा पैदा होती है और जबतक उसे उसका लक्ष्य(Incentive) प्राप्त नही होता वो नही रुकता और इसी तरह फिर एक नई जरूरत होती है और ये चक्र चलता ही जाता है।
बूढ़े बुजुर्ग सही ही कहते है कि इच्छाओं का कोई अंत नही है। हम एक ऐसे समाज मे जी रहे है जहां हर कोई या तो दूसरे को नीचा दिखाने में व्यस्त है या फिर अपनी इच्छाओं को दूसरों पर थोपने में परंतु खुद अध्यवसायी बनने के लिए कोई प्रयत्न नही करना चाहता।
जीवन के इस चक्र में हम अक्सर भूल जाते हैं कि हम इस भूतल पर केवल अपनी इच्छाएँ ही पूरी करने नही बल्कि दूसरों की इच्छाओं को भी पूरा करने में भागीदार बनने आएं हैं, हमारे कुछ ऐसे कर्त्तव्य और दायित्व है जो हमारे न होकर भी हमें निभाने चाहिए। किसी के बिना बोले मदद कर देना, सुख दुख में साथी बनना, दूसरों की इच्छाओं के लिए त्याग करना ये सभी कुछ ऐसे कर्त्तव्य हैं जो मनुष्य को बिना बोले ही निभाने चाहिए।
हम अक्सर समाज में व्याप्त बुराईओं के लिए एक दूसरे को कोषते हैं पर यदि हम केवल अपना कर्तव्य भी निभा दें तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ सकते हैं जो काफी हद तक एक आदर्श समाज कहा जा सके एवं एक सभ्य सभ्यता का निर्माण कर सके।
~ शिखर पाण्डेय
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